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लेखनी कहानी -15-Nov-2022 विश्वास

आज सुबह सुबह न्यूज चैनल्स पर एक समाचार चल रहा था । लिव इन में रहने वाली एक लड़की के 35 टुकड़े किये और उन्हें इधर उधर फेंक दिया गया । दिल दहलाने वाला समाचार था । आश्चर्य की बात यह थी कि हत्यारे के चेहरे पर कोई मलाल नहीं था बल्कि वह हंस रहा था । गजब के जल्लाद होते हैं ऐसे लोग जो इतना घिनौना काम करने के बाद भी इस तरह हंसने का दुस्साहस कर लेते हैं । उसके इस तरह हंसते चेहरे को देखकर मेरा खून खौल गया । मगर मैं क्या कर सकता था ? जिसको करना है वह अगर अपना काम सही ढंग से करे तो किसी व्यक्ति की इतनी हिम्मत ही नहीं हो । मगर कानून और न्याय व्यवस्था इतनी "मुस्तैद" है कि वह अपराधियों को विश्वास दिलाती है कि चाहे तूने कितना ही घिनौना कृत्य किया हो, हम तुझे सजा नहीं होने देंगे । 

मेरे मन में कुछ इसी तरह के विचार चल रहे थे कि अचानक मुझे खयाल आया कि अगर ऐसे किसी अपराधी का साक्षात्कार लिया जाये तो कैसा रहेगा ? विचार आते ही मन में कौतुहल जागा कि अगर ऐसा हो जाता है तो यह एक वास्तव में "क्रांतिकारी" कदम होगा । आजकल मीडिया भी "क्रांतिकारी बहुत क्रांतिकारी" हो गया है । पर ऐसा अपराधी मिलेगा कहां ? 
मेरी मुश्किल बहुत जल्दी आसान बन गई । आजकल तो लगभग हर शहर में ऐसे दुर्दांत अपराधी खुलेआम घूम रहे हैं । इधर उधर भटकने की जरूरत ही नहीं है । अपने शहर में ही एक "महान आत्मा" मिल गई । उसने अपनी पत्नी का कत्ल करके 72 टुकड़े किये थे । कुछ टुकड़े तो उसने फेंक दिये थे और बाकी के टुकड़े उसके फ्रिज की शोभा बढा रहे थे । हालांकि पुलिस ने उसे पकड़ लिया था मगर कोर्ट तो जमानत देने में "विश्वास" करती हैं इसलिए उसे जमानत दे दी । कोर्ट का मानना है कि जमानत आरोपी का अधिकार है इसलिए उसे तुरंत जमानत मिल जाती है । अब ये अलग बात है कि वह बाहर निकल कर सबसे पहले गवाहों को डराये, धमकाये, मारे,पीटे , कुछ भी करे , यह काम कोर्ट का नहीं है, पुलिस का है , सरकार का है । वह गवाहों की सुरक्षा करे , यह उसका उत्तरदायित्व है । कोर्ट का काम "जमानत" देना है तो दे दी । अब यदि उस केस के पचास गवाह हैं तो सरकार उनकी सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था करे । इसके लिये अगर 500 पुलिस वाले लगाने पड़ें तो लगाए, सरकार की ड्यूटी है कोर्ट की नहीं । 
तो मैंने उस अपराधी का साक्षात्कार लेने के लिए जुगत भिड़ाई । आजकल ऐसे "वी आई पी" का साक्षात्कार मिलता कहां है ? बड़ी मिन्नतें करने के बाद साक्षात्कार की अनुमति मिली । 
जब उसके घर पहुंचे तो हमारी पूरी तलाशी हुई । बड़ी शानदार कुर्सी पर बैठा था वह । दो चार,नौकर चाकर सेवा में मशगूल थे । हम एक लल्लू की तरह वहां पास के स्टूल पर बैठ गये । उसके चेहरे पर गजब की रौनक थी और धूर्तता तथा मक्कारी का शानदार "ग्लो" था । मुझे उससे बड़ी ईर्ष्या हुई । मेहनत की रोटी और इज्जत की जिंदगी जीने वाले मुझ जैसे आम आदमी का चेहरा कितना बुझा बुझा सा रहता है । मगर अपराधियों , सॉरी , अपराधी नहीं वी आई पी,  अपराधी कहने पर कोर्ट ऐतराज करता है, अपराध अभी प्रमाणित नहीं हुआ है ना , जब होगा तब कह सकेंगे अपराधी । तो अभी उसे आरोपित कहेंगे । तो, आरोपित मस्त मौला था और उसके चेहरे पर गजब का आत्मविश्वास था । 
हमने साक्षात्कार शुरू किया 
"कैसे हो" 
"बढिया" 
"कैसा फील कर रहे हो" ? 
"बहुत बढिया" 
"कत्ल करके और 72 टुकड़े करने के बाद भी" ? 
"एक बात बताइये , 72 टुकड़े करने और एक टुकड़ा करने की सजा अलग अलग है क्या" ? 
"नहीं" 
"तो फिर 72 टुकड़े करने में कोई आपत्ति है क्या ? जब सजा समान है तो 72 टुकड़े करो या एक, बात एक ही है । मैं तो 200 टुकडे करना चाहता था मगर टाइम कम था इसलिए नहीं कर पाया" 
"कत्ल करने का कोई कारण" ? 
"बहुत बड़ा कारण था । मैं दूसरी लड़की से एक और निकाह पढना चाहता था । वह मान ही नहीं रही थी तो मैं क्या करता ? मजबूरी में मारना पड़ा उसे । मेरे पास कोई विकल्प नहीं बचा था । मेरी उदारता तो देखो , मैंने उसका चेहरा तेजाब से नहीं जलाया । उसके निजी अंगों में कुछ घोंपा भी नहीं । अब आप ही बताइए, मैं दुर्दांत कहां से हूं ? और मैंने किया ही क्या है ? सिर्फ कत्ल ही तो किया है ? वह कोई बच्ची तो थी नहीं । 
उसकी बात में दम था । वह कहने लगा "लोग तो बच्चियों के साथ भी दुष्कर्म करके , उनकी हत्या करके भी बरी हो जाते हैं । मुझ बेचारे ने न तो बलात्कार किया और न ही कुछ अमानवीय काम किया था । शव के टुकड़े करना अमानवीयता में नहीं आता है । शव को तो दफनाया जाता है । यदि छोटे छोटे टुकड़े कर उन्हें दफनाया जाये तो वे जल्दी ही गल जायेंगे । एक तरह से मैंने पुण्य का ही काम किया है"

पहले तो मैं भी इसे अमानवीय कार्य मान रहा था मगर अब तुम्हारी बातों से लग रहा है कि यह तो पुण्य  का काम है । चलो, बढिया किया । तो फांसी की सजा तो शायद हो ही जायेगी" ? मैंने बात आगे बढाई । 
"कैसी बातें कर रहे हो ? ये कोई "रेयरेस्ट ऑफ द रेयर" केस थोड़ी ना है । अब तो आम बात है कत्ल करना । इसलिए इसमें फांसी तो बिल्कुल नहीं होगी , यह तो मुझे पक्का यकीन है । हमारी न्यायपालिका पीडित के साथ न्याय करे या नहीं, पता नहीं पर अपराधी के साथ पूर्ण न्याय करती है । उसके लिए वह रात को बारह बजे भी खुल जाती है । आतंकवादियों को खाने में चिकिन और मटन परोसने का भी आदेश देती है । इसलिए मुझे न्यायालयों पर पूर्ण विश्वास है । पहली बात तो यह है कि पुलिस वाले सही से जांच ही नहीं करेंगे । उनके भी तो बीवी बच्चे हैं । उनकी मंहगे स्कूल की फीस भरनी पड़ती है । वे दिन रात इतना काम करते हैं तो रिलेक्स होने के लिए फॉरेन का ट्यूर करना पड़ता है , दो चार लक्जरी गाड़ी  रखनी पड़ती है सचिन वाजे की तरह । तो यह कोई तनख्वाह में थोड़ी ना होता है ? हम जैसे लोग किसलिए हैं ? तो वे हमें जांच में पूरा सहयोग करते हैं और केस में इतनी खामियां छोड़ते हैं कि केस प्रूव ही नहीं हो पाता है । 
इसके अलावा हम लोग मंहगे मंहगे वकील करते हैं जो पैसों की खातिर कुछ भी करने को तैयार रहते हैं । वे केस जीतने के लिए साम दाम दंड भेद सबका इस्तेमाल करते हैं । समाज के प्रति कोई दायित्व भी है, यह भूल जाते हैं । आप क्या भूल गये "दामिनी" मूवी के वकील "चढ्ढा" को ? रही सही कसर सरकारी वकील पूरी कर देता है । वह न तो ढंग से केस लड़ता है न गवाही कराता है और न बचाव पक्ष के गवाहों से जिरह करता है । बहस तो वह करता ही नहीं है । इस पर भी वह हम जैसों से पैसे खाकर केस रफा दफा करवाने में मदद करता है । 
रही कोर्ट की बात । वे तो "मी लॉर्ड" हैं । उनके सामने तो भगवान भी कुछ नहीं हैं । उनकी ताकत इतनी है कि वे भगवान को भी कठघरे में खड़ा कर सकते हैं । फिर आजकल जनहित याचिकाओं का ही इतना अधिक काम रहता है मी लॉर्ड्स के पास कि उन्हें ये छोटे मोटे हत्या, बलात्कार के केसों को सुनने के लिए टाइम ही कहां हैं ? वे तो बड़े बड़े केस अर्जेण्ट बेसिस पर सुनते हैं । जैसे धारा 370 हटाना सही था या गलत ? किसान कानून सही थे या गलत ? CAA संविधान के अनुसार सही हैं या गलत ? किसी डी जी पी की नियुक्ति सही है या गलत ? सी बी आई में डायरेक्टर की नियुक्ति सही है या गलत ? चुनाव आयोग ने जो चुनाव तिथि घोषित की हैं, वे सही हैं या गलत ? उनके पास ये हत्या वगैरह के केस सुनने के लिए समय नहीं हैं । 
अगर वे जैसे तैसे करके ये केस सुन भी लें तो उनके पास "उद्धृत" करने के लिये एक वाक्य है " प्रत्येक पापी ( sinner ) का एक भविष्य होता है" । एक चार वर्षीय बच्ची के बलात्कारी और हत्यारे के भविष्य की चिन्ता इतनी ज्यादा थी कि उसे छोड़ दिया गया । छोड़ने वाले जजों में एक महिला जज भी थी । अब आप ही बताइए, मेरा अपराध उसके अपराध से बड़ा तो नहीं है ? अगर उस अपराधी का भविष्य है तो मेरा भी तो भविष्य है और न्याय पालिका हम जैसे "होनहारों" के भविष्य के लिए बहुत चिंतित है।  इसलिए मुझे पूर्ण विश्वास है कि मैं इस केस में छूट जाऊंगा । इसी आधार पर तो मैंने यह सब करने का साहस कर लिया  वरना तो यह संभव नहीं था" । 
उसके विश्वास को देखकर मुझे भी विश्वास हो गया कि इसे सजा तो होने वाली नहीं है । अब किसी और "श्रद्धा" को "कटने" के लिए तैयार हो जाना चाहिए । 

श्री हरि 
15.11.22 


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11 Comments

madhura

23-Jul-2023 09:43 AM

Nice

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kashish

23-Jul-2023 09:15 AM

ला जवाब कहानी

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Babita patel

07-Jul-2023 11:37 AM

Beautiful part

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